Sunday, January 31, 2010

ग्रहण..!

कुछ दिन पहले सूर्य ग्रहण को लेकर समाचार चैनलों पर जो हाय तौबा देखने को मिली, उससे चैनलों के मानसिक दीवालिया पन का पता चलता है. कोई चैनल पंडितो से ग्रहण के कुप्रभावो का विश्लेषण करवा रहा था तो कोई, घर में क्या सावधानी बरतनी चाहिए, इस बारे में सलाह दे रहा थे...

बहराल.. इन्टरनेट पर भटकते भटकते गुलज़ार साहब की कुछ पंक्तिय मिली है ग्रहण पर....


कॉलेज के रोमांस में ऐसा होता था/
डेस्क के पीछे बैठे-बैठे/
चुपके से दो हाथ सरकते
धीरे-धीरे पास आते...
और फिर एक अचानक पूरा हाथ पकड़ लेता था,
मुट्ठी में भर लेता था।
सूरज ने यों ही पकड़ा है चाँद का हाथ फ़लक में आज।।

गुलज़ार...

Friday, April 10, 2009

बैगानी शादी मे अब्दुल्लाह दीवाने

सब से पहले तो नईदुनिया से क्षमा चाहता हू की उनकी इज़ाज़त के बिना उनकी खबर को अपने ब्लॉग पर चिपका रहा (http://epaper.naidunia.com/Details.aspx?id=47900&boxid=27651468). सुशील दोषी क्रिकेट के जाने माने टीवी commentator है. इंदौर से है. सो नईदुनिया के लिए नियमित रूप से क्रिकेट स्तंभ भी लिखते है. कुछ दिन पाले शाहरुख ख़ान उनकी 20-20 क्रिकेट टीम के कोच के उस प्रयोग का बचाव करते हुए सुर्ख़ियों मे आए थे जिसका सुनील गावसकर ने विरोध करा था. सुनील गावसकर अपने आप मे legendry है. साथ मे यह भी उतना ही सच है की कोलकाता नाइट राइडर्स को शाहरुख ने खरीदा है. सिर्फ़ इस लिए की शाहरुख ख़ान कुछ ऐसा प्रयोग करना चाहते है जिस का सुनील गावसकर विरोध कर रहे है, सुशील दोषी को शाहरुख से तकलीफ़ है. उस पर वे शाहरुख को नीचा बताने के लिए शाहरुख की बिल्लू को फ्लॉप और आमिर की ग़ज़नी को super hit बताते है. अब इस बात का क्रिकेट से कोई लेना देना नही, फिर भी यह बात क्रिकेट से संबंधित स्तंभ मे है.

शाहरुख ने कहा था की वे 1 प्रयोग करना चाहते है. सफल हुआ तो ठीक,नही तो टीम मे फिर से 1 कप्तान होगा.

प्रयोग करने मे हर्ज़ क्या है. प्रयोग करने से क्यों डरना. अगर एडिसन प्रयोग करने से डरता तो शायद हम आज भी अंधकार मे ही होते. ओर सुशील जी, आप भले ही बहूत जाने माने टीवी commentator है, पर आपको लेखन मे टीवी वाला मुकाम हासिल करने के लिए बहूत मेहनत करनी है...

Friday, March 20, 2009

जबान पकड़ के, कही फिसल न जाए

आज कल जबान फिसलने का मौसम चल रहा है। वरुण गाँधी भावनाओ में बह कर हाथ काटने की बात करता है, तो ओबामा बिना सोचे समझे ख़ुद की बोलिंग कौशल को स्पेशल olympic के खिलाड़ियों से भी बुरी बताते है. अब आदमी वह है जो गलती होने पर मान ले उसके लिए क्षमा मांग ले। और यही मालूम पड़ता है की किस व्यक्ति में कितनी विनम्रता है। ओबामा को ख़ुद की गलती का तुंरत अहसास हो गया और उन्होंने गलती स्वीकार कर ली। पर वरुण भाई यह मानने को तैयार नही की उन्होंने कोई गलती करी है। उल्टा वह मीडिया पर आरोप लगा रहे है की उन्होंने (मीडिया ने) फुटेज के साथ छेड़-छाड़ करी है।
अब प्रजातंत्र ने सब को अपने विचार रखने की छूट दे रखी है। पर इस का मतलब यह नही की जो मन में आया वह बोल दिया। अरस्तु ने कहा था मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। तो जब कोई प्रजातान्त्रिक समाज में रहता है तो क्या बोल रहा है उसका अहसास होना जरूरी है।
पिछले चुनावो में आदरणीय सोनिया जी ने नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। अब यह पता नही की उनकी जबान फिसली थी या वह इस बात में विश्वास करती है की मोदी जो सच में मौत के सौदागर है। पर उन्होंने न तो बयान पलटा और न ही मीडिया पर आरोप लगाया। बड़ी पक्की है सोनिया जी जबान की। जो कह दिया सो कह दिया। पक्के तो अटलजी भी है। भगवान् उन्हें उम्रदराज करे। वे इतना विराम ले कर बोलते थे की जबान फिसलने की गुन्जायिश ही नही रहती थी।
तो वरुण भाई जनता सब जानती है। ज्यादा बहने बनने से ख़ुद की ही मट्टी पालित होगी। अगर आपको लगता है की भावनाओ में बह कर कुछ ग़लत बोल दिया है तो विनम्रता से माफ़ी मांगने में कोई हर्ज़ नही है (अगर ओबामा मांग सकता है तो आप क्यों नही)। और अगर लगता है की कोई ग़लत बात नही करी है तो बहने बजी छोड़ो और जो कहा है उस पर डेट रहो।

वंदे मातरम ।

Friday, January 16, 2009

राजबाड़ा

इंदौर का राजबाड़ा शहर के मध्य में स्थित है. राजबाड़ा के वास्तविक निर्माण imageकाल और निर्माता के बारे में अलग अलग मत है! राजबाड़ा का निर्माण कई  चरणों में हुआ था. प्रम्भारिक प्रमाणों के मुताबिक इसका निर्माण १८११ से १८३३-३४  के बीच हुआ था.

यह ७ मंजिल इमारत को मल्हार राव होलकर ने ४ लाख रूपये से अधिक राशि खर्च कर के बनवाया था. इसकी लम्बाई ३१८ फुट और चौडाई २३२ फुट है. उसमे होलकरों के कुलदेवता मल्हारी मार्तंड का मन्दिर और गद्दी है. स्टेट गज्ज़तिएर के अनुसार १८११ के पूर्व भी यहाँ एक महल हुआ करता था. १८०१ में एक युध के दौरान पुरानी इमारात को काफी नुकसान हुआ था. इसका पुनर्निर्माण १८११ में तात्या जोग ने शुरू करवाया. यह पुनर्निर्माण हरी राव होलकर के शाशन काल तक चलता रहा था. इसके मुख्य द्वार का नाम कमानी दरवाजा था. महल में राजपुताना और मराठा स्थापत्य कला की झलक देखने को मिलती है.

सन् १९८४ में दंगो के दौरान इसकी इमारत को काफी नुक्सान पहुचा था. अब एस इमारत की देखभाल भारतीय पुरातत्व विभाग करता है.

शहर के मध्य स्थित होने के कारण इसके आस पास पुराना शहर एवं बाज़ार बसा है.

Saturday, August 23, 2008

बिना टिकेट की चिट्टी

गौरव को १ दिन बेनाम और बिना डाक टिकेट लगा पत्र आया...

शायद गौरव के नाम यह पहली चिट्टी थी... तो वह काफी उत्साहित था... बिना टिकेट के होने के कारण, शायद दोगुनी कीमत दे कर चिट्टी छुडानी पड़ी...

लिफाफे के अन्दर नईदुनिया के संपादकीय की कटिंग थी... जिसका शीर्षक शायद था "आपका इसके बारे में क्या विचार है..." उस संपादकीय में पड़ने लिखने वाले बच्चो पर था...

सभी अचम्भित थे की यह चिट्टी किसने भेजी... फ़िर किसी ने लिफाफे पट डाक घर का ठप्पा पड़ने की कोशिश करी... वह देवास के किसी डाक घर की मुद्रा थी। २-३ दिन पुरानी। तभी किसी का ध्यान गया की सुशिल काका २-३ दिन पहले देवास गए थी... तब जा कर चिट्टी भेजने वाले का पता चला...!

Friday, August 22, 2008

"S" For "Silly"

आज जब एलिजाबेथ हमारे एरिया मैं आई तो just to check how are thing going on in the new office... अमित ने पूछा की डेस्क पर "S" का बटन क्यूँ है... एलिजाबेथ ने कहा ... "S" For "Silly".... पहले तो मैं यह सुन कर हँसा... पर बाद मैं कुछ ऐसा याद आया की दिन ही ख़राब हो गया...

"Silly" शब्द मेरे से कुछ इसी तरह जुडा हुआ है...

कक्षा ४।
School: Emerald Heights School...
Subject: Science
Teacher: Gandhi

मैं बाल विनय मन्दिर से Emerald मैं कुछ दिनों पहले ही ट्रान्सफर हो कर आया था। बाल विनय मन्दिर मैं हिन्दी मीडियम मैं पडी होती थी... और एमराल्ड मैं तो बात भी इंग्लिश मैं करनी पड़ती थी... बड़ी विकट स्तिथि मैं था मैं। इंग्लिश मैं ज्यादा कुछ समघ मैं नही आता था...
टीचर पड़ती इंग्लिश मैं थी... किताबे इंग्लिश मैं... कुछ समघ नही आता क्या करूँ...
टीचर कुछ पूछती क्लास मैं, सभी लोग हाथ उचा कर देते, I know I know कहते हुए..
मेरे को लगता की यह सब हात खड़ा कर रहे है वोह तो ठीक है, पर I "no" क्यूँ बोल रहे है...? उस वक्त मेरे लिए I know मतलब I "No" था...

फिर टीचर मुझ से कुछ पूछती तो, अव्वल तो मुझे समझ नही आता की वे क्या पुच रही है ... आता भी तो मुझे उसका जवाब नही पता होता था...
एस बात पर मुझे अक्सर क्लास के बहार का रास्ता ही दिखा दिया जाता था... मेरी क्लास मैं १ लड़की थी,
सोनाली <उप नाम>। चुकी मियन क्लास से अक्सर बहार ही होता था, वह मुझे "Silly boy" कहती थी...
अब चुकी मुझे ज्यादा इंग्लिश तो आती नही थी... इसलिए मुझे "Silly Boy" का मतलब भी नही पता था... मैं चुप चाप सुन लेता था...
आज जब एलिजाबेथ ने अमित को बोला "S for Silly", तो मुझे सोनाली के "Silly Boy" की याद आ गयी...!

Friday, June 27, 2008



मांडना, जैसा की इसे मालवा, निमाड और दक्षिण राजस्थान मे कहा जाता है. काफी दिनों से इस तरह के चित्र और आक्र्तियाँ दिमाग मे घूम रही थी, और सोच रहा था की मांडना का इमेज सर्च करू. मैं काफी आशावादी नही था इसे ले कर, पर सर्च रिजल्ट मैं जब पहले पन्ने पर २ मांडने दिखे तो काफी उत्साहित हुआ.. मांडने का चलन शहरों के मुकाबले कस्बो और गावों मैं ज्यादा देखने को मिलता है। शादी ब्याह और तीज त्योहारों (सक्रंती, होली, गणगौर मुख्यतः) मे मांडने घर के आँगन और दीवारों पर मांडे जाते है।
खडिया और घेरू (गेरू), का उपयोग कर विभिन्न आकृतियाँ उकेरी जाती है.

मुझे याद पड़ता है की जब मैं मेरे चाचा और बुआ की शादी मे सीकर, राजस्थान जाता था, तब वहाँ हमारे पुश्तेनी मकान की साफ सफ़ाई के बाद घर के बाहरी दिवार को सजाने के लिए उस पर कुछ आकृतियाँ रंगो से निकलवाई जाती थी, जैसे की मुख्य द्वार के दोनों तरफ़ हवाई जहाज, फूल गिरा कर स्वागत करती महिलाये आदि... उनको मांडना तो नही कह सकते पर दोनों का उद्देश्य एक ही होता है।